Thursday, 24 February 2011

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कोई ख्वाब है या एक हकीकत है तू?
जो भी हो मेरी इन आँखों का नूर है तू,
क्यों कभी उलझी हुई सी पहेली है ,
और कभी मेरी उलझनों का जवाब है तू?!!….

जितना सुलझाऊ उतना उलझती है तू
यादो का साया बनके जब लिपटती है तू,
कभी हसाती तो  कभी रुलाती है तू
क्या अब भी मेरी ज़रूरत है तू?!!

अपने अन्दर कितने राज़ छुपाती है तू,
लफ्ज़ ही नहीं आँखे भी मुझसे छुपाये रखती है तू,
कभी हां तो कभी ना बन जाती है तू
क्या अब मुझसे इतनी अंजान है तू?!!

क्या बिन-वजह की सजा है तू,
या गैरों में मेरी एक अपनी है तू?
मेरी ज़िन्दगी की आखरी ख्वाइश है तू..
क्यों मेरे लिए इतनी ख़ास है तू??!!
                                                                                                             - PC

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